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"संघर्ष की राह पे जो चलता है,
वो ही संसार को बदलता है,
जिसने रातों की जंग जीती,
सूर्य बनकर वही निकलता है"!
नमस्कार दोस्तों, क्या आप जानते है आपका अधिकार क्या है और आपकी जिंदगी कितनी अनमोल है सोचो अगर आज भी एक इंसान किसी दूसरे इंसान की गुलामी करता, स्वतंत्र नहीं रहता, समानता नहीं रहता, संपन्न नहीं रहता, भेद भाव रहता और आपका अधिकार नहीं रहता तो आप इस दुनिया में कैसे जीते जैसे हमारे पूर्वज अंग्रेज के गुलाम थे वैसे हम आज रहते। जैसे एक राष्ट्र की एकता और अखंडता नहीं रहती तो क्या होता हम कीड़े मकोड़े की जिंदगी जीते। लोग बांधुता की भावना में रहते नहीं तो क्या होता ।
लेकिन आज हमारी जिंदगी अच्छी जीने का अधिकार है आज हम अपने भारतीय संविधान के अनुसार दी गई अधिकार के तहत अपने विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म की भेदभाव ना करते हुए अपने आप को एक दूसरे के साथ भाई चारे की भावना उत्पन्न कर सकते है।
तो अाइए जानते है एक महान इंसान की जिंदगी के कुछ ऐसा पल जिससे सायद आपको और मेरे को कुछ सीख मिल सके , मेरे ख्याल से
"जिस किसी के जीवन में सफलता प्राप्त करने में अगर कठिनाई आती है तो आप घबराइए नहीं,
क्योंकि कठिन रोल अच्छे एक्टर को ही मिलता है,"
जहां तक मेरा दिल यह कहता है की,
"पैर पर लगने वाली चोट इंसान को चलना सिखाती है,
और मन को लगने वाली चोट इंसान को समझदारी से
जीना सिखाती है !"
अर्थात जब जब हमारी पैर में चोट लगी तो हम चलना छोड़ नहीं सकते बल्कि और चलने की कोशिश करते रहते हैं,इसीप्रकार मन को लगने वाली चोट (ठोकर, असफलता, गरीबी, यही हमे) समझदारी से जीना सिखाती है।
आइये जानते है एक ऐसा व्यक्ति जिसको अपनी जिंदगी में कोई अधिकार नहीं था, पानी पीने का अधिकार नहीं था, पढ़ने का अधिकार नहीं था लोगों को इस इंसान के परछाई से भी दिक्कत थी क्योंकि वह निम्न जाती का लड़का था उच्च जाती के लोग निम्न वर्ग की महिलाओं को पूरी तरह से साड़ी पहनने का अधिकार नहीं था।
जिनका जन्म महाराष्ट्र के छोटे से गाव में निम्न जाती में हुआ था । भीमराव अंबेडकर को पढ़ने की ललक थी तो उन्होंने अपने पिताजी को कहा कि मै पढूंगा, तो पिताजी ने कहा कि बेटा हमारी जात छोटी जात है हमे पढ़ने का अधिकार नहीं है और न ही अपने जीवन को अपने अनुसार जीने का अधिकार है, लेकिन भीमराव जी पढ़ना चाहते थे तो उनके पिताजी ने किसी भी तरह से उनका स्कूल में दाखिला कराया तो स्कूल में यह कहा गया कि ये नहीं पढ़ सकता ये छोटी जात का है।
इसके परछाई से स्कूल अशुद्ध हो जाएगा, भीमराव के पिताजी ने उनसे प्रार्थना की तो उसको बाहर बैठ कर पढ़ना पड़ा, स्कूल के बाहर बैठ कर पढ़ना पड़ा, जब पढ़ना सुरु किया और मास्टर जी कुछ सवाल पूछते तो वो जवाब देना चाहता था तो मास्टर था वो उसको चुप चाप रहने की सलाह देते थे उसको चुप रहना पड़ता था, जब वह घर जाता था तो सड़क पर चलने वाले उच्च जाती के लोग उसके परछाई से भी दिक्कत होता की अशुभ होगा उसको कुएं से पानी पीने का अधिकार नहीं था सड़क पर चलने का अधिकार नहीं था।
लेकिन भीमराव अंबेडकर जी यही सब पीड़ा, ठोकर, गरीबी, छोटी जात के कारण ठोकर मिलता था फिर भी उसने हार नहीं मानी उन्होंने ठान लिया कि मेरा जन्म इसलिए हुआ है कि मै एक दिन इस पूरी दुनिया को बदल दूंगा ऐसा कुछ कर दिखाऊंगा की जिंदगी जीने में एक इंसान दूसरे इंसान से घृणा करता है।
ये सब देखते हुए अंबेडकर जी स्कूल के बाहर बैठ कर पढ़ते थे हर साल अच्छे नंबरों से पास होते फिर उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ त्याग किया उसके एक बच्चे की देहांत हो गया फिर उन्होंने अपने बच्चे को देखने आया लेकिन उसको दफनाने के लिए रुक नहीं पाया क्योंकि अगर वह वहां रुकता तो उसका एक दिन उसके खिलाफ चला जाता, सोचो यार इतना कठिन संघर्स करके कई पुस्तक, कई भाषाओं, बड़े बड़े यूनिवर्सिटी की डिग्री हासिल किए, वकील बने,
बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर।
कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के एम.ए. पी.एच. डी. ओर लंदन यूनिवर्सिटी की m. s. c. तथा बार एक्ट की डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉ आंबेडकर अस्पृश्यता निवारण आंदोलन के कार्य छेत्र में कूद पड़े जो उनके नीवं का एकमात्र ध्येय था। जो डिग्रीयां हाशिल की उनसे उनका ज्ञान कही अधिक विशाल था।
उनमे मष्तिस्क में समाज शास्त्र,अर्थशास्त्र,धर्मशास्त्र ,मानसशास्त्र, भाषण शास्त्र, नीतिशास्त्र,,विधानशास्त्र, तत्वज्ञान,कानून,इतिहासः आदि विभिन्न विषयों का विशाल ज्ञान समाया हुआ था।
उनकी स्मरण शक्ति तीव्र व प्रबल थी। बाबा साहेब का वयक्तित्व कही अधिके ऊंचा था। अस्पृश्य समाज मे उनका स्थान सर्वोपरि था।
कहना चाहिए कि जब से हिन्दू समाज मे अस्पृश्यता का प्रारंभ हुआ तभी से अर्थात सदियों से उनकी योगयता का कोई भी पुरुष पैदा नही हुआ आज तक।।
डॉ आंबेडकर,ज्योतिबा फुले की परम्परा जे क्रान्तिजारी समाज सुधारक थे।उनका अछूतोद्धार आंदोलन के छेत्र में आगमन बहुजन समाज क्रांति का घोतक था।
डॉ आंबेडकर ने 29 जुलाई 1927 को अपने बहिष्कृत भारत नामक पाक्षिक पत्र में लिखा था।यदि लोकमान्य तिलक अछुतो में पैदा होते,तो वह स्वराज्य मेरा जन्मशिद्ध अधिकार है, ये आवाज कभी बुलंद न करते,बल्कि उनका सर्वप्रथम नारा होता,अछूतपन का खात्मा करना मेरा जन्मशिद्ध अधिकार है।
बाबासाहेब अम्बेडकर को शत,शत नमन।
सोचो यार इतना बड़ा चुनौतियों का सामना करने के बाद उन्होंने
लिखा भारतीय संविधान की रचना की जिंदगी जीने का अधिकार सभी को
है इंसान सभी है सबको समान स्वतन्त्रता, समानता, न्याय होना जरूरी है सोचते हुए अंबेडकर जी ने एक महान पुस्तक का निर्माण किया जिसको पारित कराने के लिए भी उसको संघर्ष करना पड़ा लेकिन उसका मेहनत बेफिजूल नहीं गया।
आखिर आया वो दिन जब हमारा संविधान लागू किया गया और सबको समान अधिकार दिया गया .............
और इसका प्रस्तावना हर किसी को जानना जरूरी है कि क्या है भारतीय संविधान जिसको आज दुनिया के बड़े बड़े
देशों में भी इसका कानून लिया गया है। पूजते हैं भीमराव अम्बेडकर जी को।
देखिए क्या कहती हैं हमारी संविधान
की,
हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण, प्रभुत्व-संपन्न , समाजवादी, पंथ- निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को ;
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वन्त्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए
तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (मिती मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द द्वारा इस संविधान को अंगिकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
यदि बचपन से ही बच्चे की परिवरिश संविधान की उद्देशिका के अंतर्गत हो, तो समाज- राष्ट्र की समस्त समस्याओं का अंत निश्चित है।
क्या आप लोग मेरा सपोर्ट देंगे अगर हमारे देश में ऐसा हुआ तो गारंटी है कि हमारा देश तरक्की करेगा ,
मनुस्मृति नहीं...... संविधान चाहिए।
धर्म नहीं....... अधिकार चाहिए।
मंदिर नहीं...... स्कूल चाहिए।
भगवान नहीं....... विज्ञान चाहिए।
भाषण नहीं........ रोजगार चाहिए।
पूंजीवाद नहीं...... समाजवाद चाहिए।
धर्मतन्त्र नहीं........ लोकतंत्र चाहिए।
असमानता नहीं....... समानता चाहिए।
अनेकता नहीं....... एकता चाहिए।
अन्याय नहीं........ न्याय चाहिए।
भीख नहीं......... हक चाहिए।
गुलामी नहीं........ आजादी चाहिए।
जय भीम जय भारत जय संविधान
संविधान कितना भी अच्छा क्यों ना हो अन्तः वह बुरा साबित होगा अगर उसे इस्तेमाल में लाने वाले लोग बुरे होंगे।
संविधान कितना भी बुरा क्यों ना हो अन्तः वह अच्छा साबित होगा अगर उसे इस्तेमाल में लाने वाले लोग अच्छे होंगे।।
डॉ. भीमराव अंबेडकर
लेकिन आज भी हमारे देश में ऐसे लोग हैं जो इसका विरोध करते हैं और एक इंसान दूसरे इंसान को चोट पहुंचाओ कर के सिख देते हैं और देश में जात पात धर्म के नाम पर लड़ाई करा रहे है उसका नुकसान उसी को होगा, लेकिन अपना अधिकार नहीं जान पाते कि हमे एक दूसरे के साथ भाई चरे की भावना, एकता, सही न्याय और एक दूसरे की सहायता करने की प्रेरणा दी जाने की कोशिश करें,
हम, स्पेशल चाइल्ड वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन के मेंबर (लोग), (बेरोजगार लोगों को रोजगार देने और गरीब, बेसाहाय, अनाथ बच्चे, बुजुर्ग व्यक्ति को अच्छी जिंदगी का मौका देती है) और अपने देश को सम्पूर्ण प्रभुत्व- संपन्न, समाजवादी, पंथ- निरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य , सबको संपन्न जीवन बनाने के लिए तथा संस्था के समस्त मेंबर को ;
सामाजिक, आर्थिक और रजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विस्वास , धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता देती है।
प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और संस्था की एकता और अखंडता
सुनिश्चित करने वाली बंधूता (एक दूसरे की सहयोगी) बढ़ाने के लिए,
दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संस्था की सभा में आज तारीख 01 फरवरी 2020 को इस संस्था के मेंबर होने के नाते इस कथन को अंगीकृत , अधीनियमित और आत्मारपित करता हूं।
इसी प्रकार हमारे संस्था के उद्देश्य है कि सबको समान रूप से सेवा अधिकार न्याय रोजगार मदद इत्यादि प्रदान करती है और इंसान को इंसान की मदद करने की प्रेरणा देती है ना की नीच दिखाने की इसके संस्थापक श्री एसपी सर भी एक महानायक इंसान है जो कि इतना अच्छा और आसान जिंदगी जीने का तरीका सिखाते है जिसको हमे अपने जीवन में लागू करना चाहिए इसके लिए आप हमारे spl परिवार में सामिल
हो सकते है।
"कभी हार ना मानने की आदत ही
एक दिन जितने की आदत बन जाती है"
और अपने जीवन में नाम और पैसा दोनों कमाए
हमारी संस्था splcwo दुनिया की no.1 संस्था है जो हमें बहुत कुछ लाभ देता है और अगर आप भी अच्छा काम करना चाहते है तो आपका स्वागत है spl फैमिली की तरफ से । अब आपको एक अच्छे काम के लिए एक करना कठिन तो होगा
क्योंकि,
मेरे ख्याल से "अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोगों को किसी भी बात या मुद्दे पर एक करना तो आसान है। लेकिन पढ़े लिखे लोगों को संघटित करना मेंढ़क को तराजू में तौलने के समान है। जब दूसरे को तराजू में डालते हैं तब तक पहला कूद के भाग जाता है। क्योंकि हर पढ़ा लिखा व्यक्ति अपने आप को हर बात में दूसरे से ज्यादा श्रेष्ठ समझता है"
SPONSER- DHRITESH KUMAR LANJHI
ID- 558
WATSAPP- +91 9993530547
धन्यवाद
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